“पटाखे मत फोड़ो,
ये आदत अब छोडो,
इनसे प्रदूषित पर्यावरण होता है,
व्यर्थ का लगाया सब धन होता है!
रासायनिक विष जो हवा में मिला रहे हो
डेसीबल्स की स्वीकृत सीमा के बाहर जो जा रहे हो
जरा इनके परिणामों पे विचार करो
अपनी अवस्था के अनुरूप आचार करो|
आने वाली पीढ़ी को क्या मुंह दिखाओगे?
दमे की बीमारी-बहरापन धरोहर में दे जाओगे
छोड़ जिद अपनी विवेक से नाता जोड़ो
पटाखे मत फोड़ो, ये आदत अब छोड़ो|”
“महोदय! आपके बातों में तर्क ठोस बड़ा है
हर शब्द में सच्चाई कोने कोने तक भरा है
मज़ाल नहीं हमारी जो इनका विरोध करेंगे
पर आज्ञा हो आपकी तो एक अनुरोध करेंगे
जरा अपने पुष्पक की खिड़की का शीशा नीचे करिये
उतर जमीन पे कुछ सांस खुले में भी भरिये
वातानुकूलित कक्ष में बैठ जो लेख ये लिख रहे हैं
संसार की बिगड़ती हालत पे चिंतित दिख रहे हैं
बचपन में पढ़ी किताबों के पन्ने फिर से पलट लीजिए
प्रदुषण का वो अध्याय जरा फिर से रट लीजिए
‘उर्जा उपभोग’ का एक अनुभाग वहाँ होगा
प्रति व्यक्ति आकलन करने का संभाग वहाँ होगा
जो आदते अब आपकी जीवन शैली का हिस्सा हैं
उनके प्रभावों पर लिखा पूरा एक किस्सा है
अँधेरा जो आपको दिखता नहीं, उस दिए के भी तले है
दिवाली पे ही नहीं, साल भर जो जले है
और रही बात दूषित वातावरण करने की
तो इन चिटपुटीयों का अंश छोटा है
उस दमे से ज्यादा घुटन,
इस शोर से ज्यादा बहरापन,
और धुएँ से ज्यादा प्रदुषण,
तो आपके पाखंड से होता है!
as usual very nice chauraaa... the 2 sides of the coin
ReplyDeleteAti sundar Chauri sir...please write more often :)
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