मैं कहूँ जो मैं करूँ जो - सब गलत, बस तू सही!
एक तू मुझमें ही मुझ जैसा नहीं!
हो मुनासिब जो मुझे, मुश्किल हो तेरी,
हो उदासी जो मेरी, महफ़िल हो तेरी,
चाहता हूँ मैं जिसे हो दूर मुझसे,
है बखूबी जानता, मंजिल वो तेरी,
जो मुझे प्यारा है जिसकी आरज़ू है,
क्यूँ सुहाता है नहीं तुझको वही,
एक तू मुझमें ही मुझ जैसा नहीं!
जो तरीकों से मेरे दुनिया ख़फा हो,
क्या नया इसमें, सुनूँ उसकी मैं क्यों फिर,
जो मेरी हर एक तरक्की से जला हो,
लड़ भी जाऊं मैं अकेले जग से लेकिन,
अनसुनी कर दूँ मैं कैसे ये नसीहत अनकही,
एक तू मुझमें ही मुझ जैसा नहीं!
ठान कर हर बार जो घर से निकलता हूँ,
एक रस्ता एक ही गंतव्य रखता हूँ,
पथभ्रमित मुझको बनाके ख़ूब खुश होता,
मैं विकल्पों की अति में ही तो मरता हूँ,
खा तरस कर अब रहम थोड़ा यहाँ मुझपे,
जो कहा शुरुआत में था, मान ले एक बारगी,
जो कहा शुरुआत में था, मान ले एक बारगी,
एक तू मुझमें ही मुझ जैसा नहीं!
nice chauri...i liked the 2nd & 3rd para...:)
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