खुले रख छोड़े हैं
दरवाजे मैंने,
के किसी रोज तुम
पुरवा के बयार सा
चलते हुए मद्धम
आ जाओगे
और मैं मेरे खालीपन का
पुलिंदा
रौशनदान से बाहर
हलके हाथ उछाल दूंगा
और साथ उड़ जायेगा
जलते तवे पे पड़े छींटो
सा
हिस्स करते हुए
भाँप में
बेवजह होने का एहसास|
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