“ये गलत है, ये गलत है, ये गलत है!”
“तो सही क्या है?”
“वो नहीं पता! लेकिन,
ये गलत है, ये गलत है, ये गलत है!”
“जैसा आप कहें|”
“ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये
नहीं होना चाहिए!”
“तो क्या होना चाहिए?”
“नहीं मालूम! लेकिन
ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये
नहीं होना चाहिए!”
“जैसा आप कहें|”
“उन्होंने किया जो,
गलत किया,
उन्होंने कहा जो,
गलत कहा,
उन्होंने सोचा जो,
गलत सोचा!”
“तो उन्हें क्या करना, कहना और सोचना चाहिए था?”
“इल्म नहीं! बस ऐसे नहीं!”
“जैसा आप कहें|
क्यूंकि आप कह रहे हैं,
तो सही होगा,
उनका खट्टा लेकिन आपका
मीठा दही होगा|
क्यूँकि आपने जिस कोण पे
दूध की धार को
अपनी बाल्टी में गिरने दिया था
भैंस को जो लोरियाँ सुनाई थी
जिस लकड़ी को भट्टे में डाला था
जो माचिस की तीली जलाई थी
जिस मात्रा में जामन डाला था
करछी को जिस गति से
और जिन दिशाओं में घुमाया था
जिस तापमान में
जिस उंचाई पे
और जितने देर तक
बर्तन में दूध छोड़ा था
दही तो बस उसी से मीठी बनती है!”
No comments:
Post a Comment