मै कहता हु "सुन पगले! ये बात समझ ना आये,
क्यों इतना तू हुआ बावला, क्या तुझको यु भाए?"
मै पुछू "सुन ओ भवरे! क्यों इतना तू इतराए,
किन फूलो कि पंखुडियों, किन कलियों पर मंडराए?
क्या पाया, किसको देखा, कितने रस का है पान किया,
किन किन रस्तों से गुजरा, क्या क्या है तुने जान लिया?
कौन मिला तुझको ऐसा, जो तू खुद कि सुध छोड़ चला,
कैसे दिन बहुरे तेरे, तू किससे नाता जोड़ चला?
कुछ तो बतला दे सपने तू किस जग के संजोता है?"
हँस लेता है दिल, जाने कितना खुश होता है?!!
"क्या बोलू उसको जिसको बस मतलब कि है चाह यहाँ,
हर मुस्काते चेहरे में जो ढूंढे कारण कोई नया,
मै खुश क्यों तू छोड़, बता है शंकित क्यों तू फिर वैसे,
क्या हर विस्तृत अधरों से तू पूछे प्रश्न सदा ऐसे?
मै तो बेमतलब खुश हु, बेमतलब कि मुस्कान लिए,
पर तू क्यों है व्यग्र हुआ, क्या तुझको है परेशान किये?
किंचित रस्तों, रिश्तो, पुष्पों कि मुझको इच्छा ना कोई,
मिलना ना मिलना मिलके खोना क्या कोई बात नई!!
क्या है परिभाषा खुश होने कि, किस कारण जश्न मेरे?!!
मै तो बेमतलब खुश हु, बेमतलब के है प्रश्न तेरे......"