Tuesday, April 25, 2017

जो बरसे इस बार

जो बरसे इस बार, तो तर जाना

मुकद्दर से बेमौसम बरसात हुई है
बनता है तबीयत का सुधर जाना,
जो बरसे इस बार...

सिर से पाँव, रूह तलक भी भींग लो
वाजिब कई मर्तबा है बेपरवाही का हरजाना,
जो बरसे इस बार...

घुमड़ते बादलों से पूछना कूचा उनका
गर मान गए, संग अपने उनको भी घर लाना,
जो बरसे इस बार...

गिरते बूंदों की साज, परिंदों के नगमें सुनो
छोड़ कर बिजली के ठहाकों से डर जाना,
जो बरसे इस बार...

मुद्दत से बची एक प्यास है हलक में,
दिख गया जो दरिया, उतर जाना,
जो बरसे इस बार..