Sunday, December 11, 2016

घरवापसी

कतरा एक रोशनी का
किसी आसमान से जो
टूट के गिरा

बटोर हमने आँगन के
एक कोने में
बो दिया था यूँ ही

जो सालों बाद घर लौटे
तो देखा
पेड़ उग आया है
वीरान जमीं पर

हर एक टहनी पे
सौ सौ सूरज
अलमस्त लटक रहे हैं

ख़ुशी से जो पलकें झपकी
तो एहसास हुआ
बंद आँखों में भी

अँधेरा खतम हो चुका है!