Sunday, December 11, 2016

घरवापसी

कतरा एक रोशनी का
किसी आसमान से जो
टूट के गिरा

बटोर हमने आँगन के
एक कोने में
बो दिया था यूँ ही

जो सालों बाद घर लौटे
तो देखा
पेड़ उग आया है
वीरान जमीं पर

हर एक टहनी पे
सौ सौ सूरज
अलमस्त लटक रहे हैं

ख़ुशी से जो पलकें झपकी
तो एहसास हुआ
बंद आँखों में भी

अँधेरा खतम हो चुका है!

Saturday, November 19, 2016

जैसा आप कहें!

“ये गलत है, ये गलत है, ये गलत है!”

“तो सही क्या है?”

“वो नहीं पता! लेकिन,
ये गलत है, ये गलत है, ये गलत है!”

“जैसा आप कहें|”

“ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए!”

“तो क्या होना चाहिए?”

“नहीं मालूम! लेकिन
ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए, ये नहीं होना चाहिए!”

“जैसा आप कहें|”

“उन्होंने किया जो,
गलत किया,
उन्होंने कहा जो,
गलत कहा,
उन्होंने सोचा जो,
गलत सोचा!”

“तो उन्हें क्या करना, कहना और सोचना चाहिए था?”

“इल्म नहीं! बस ऐसे नहीं!”

“जैसा आप कहें|

क्यूंकि आप कह रहे हैं,
तो सही होगा,
उनका खट्टा लेकिन आपका
मीठा दही होगा|

क्यूँकि आपने जिस कोण पे
दूध की धार को
अपनी बाल्टी में गिरने दिया था
भैंस को जो लोरियाँ सुनाई थी
जिस लकड़ी को भट्टे में डाला था
जो माचिस की तीली जलाई थी
जिस मात्रा में जामन डाला था
करछी को जिस गति से
और जिन दिशाओं में घुमाया था
जिस तापमान में
जिस उंचाई पे
और जितने देर तक
बर्तन में दूध छोड़ा था

दही तो बस उसी से मीठी बनती है!”

Saturday, August 13, 2016

स्विमींग पूल वाले इडियट अंकल जी

ऐसे तो हमें बड़ी इच्छा हुई थी की ‘इडियट अंकल’ की बजाय हिंदी में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग करते हुए “****** चाचा जी’ लिखा जाये (‘जी’ लगाना पूर्वांचल के लौंडों को बचपन से ही संस्कारों में सिखा दिया जाता है – केजरीवाल ने बनारस में सांसदी चुनावों के दौरान ही सीखा था शायद!)| लेकिन आजकल असहिष्णुता को लेके जो धमाचौकड़ी मची हुई है उसकी सोचते हुए हमने अपनी लालसा अन्दर ही रहने दी| और ऐसे भी अंग्रेजी में तो गालियाँ कम अपमानजनक लगती ही हैं|

तो बात कुछ यूँ है कि पिछले साल ही हमने तैरना सीखा| साल २०१५ के तीन नववर्ष संकल्पों में से ‘तैराकी सीखना’ भी एक था| ऊपर वाले की दया और हमारे मित्र के डी.डी.ए. क्रीड़ा परिसर की सदस्यता से हमने सीख भी ली| हालांकि हमें वक्त काफी लगा, लेकिन साल के अंत तक हाथ पैर चलाना और इस पार से उस पार जाना आ ही गया| जिस तेजी से हमने तैराकी सीखी शायद उससे ज्यादे तेज अटल बिहारी बाजपाई बोल लिया करते थे| (अटल जी जैसे श्रेष्ठ नेता का हम तहेदिल से आदर करते हैं और  भारत माता की जय!) और इससे पहले की आप हमपे हँसाना शुरू कर दें, हम आपको ये भी बताये दिए देते हैं की अभी हमारे कुछ मित्र जिस गति से तैरना सीख रहे हैं, वो बाईसवीं सदी में ओलंपिक्स में भाग लेने के प्रबल दावेदार बनकर उभर सकते हैं – बशर्ते उनका स्वास्थ्य अगले सौ सालों तक बना रहे| और ऊपर से हमने किसी कोच की प्रशिक्षा के बगैर तैराकी सीखी है – जो इतनी बड़ी बात नहीं लगेगी अगर हम आपको ये बतायें कि हमारे एक घनिष्ट मित्र ने तो ‘Youtube’ के विडियो देख कर तैरना सीख लिया – वह भी एक दिन में! उनकी इस विलक्षण प्रतिभा के अनुरूप उन्हें भारत के अग्रणी रियल एस्टेट कंपनी ने अपने एक विशाल सेल्स टीम का लीडर नियुक्त करा है| खुदा का शुकर है लाइफगार्ड की नौकरी में इतने पैसे नहीं मिलते!

विषय से भटक जाने की हमारी पुरानी आदत गई नहीं लगता है! खैर, तो इस साल हमने अपने हुनर को आगे तराशने की ठान ली और सोचा अबकी बार freestyle के बाद breaststroke सीखा जाये| हमने फिर से डुबकी लगाना आरम्भ कर दिया| लगभग २० से २५ दिनों की अथक परिश्रम के बाद हमने मेंढक की तरेह हाथ पैर चलाना सीख लिया – जैसा कि हमारे एक मंझे हुए संगी ने हमें सिखाया था| उन्हें हम  हर दिन मेंढक की तरह तैरता देख रहे हैं – हालांकि जितने देर वो पानी के भीतर रहते हैं मुझे लगता है उन्होंने अपनी त्वचा से ऑक्सीजन ग्रहण करना भी सीख लिया है| लेकिन हमारे इस लेख के नायक वो नहीं, एक अधेड़ उम्र के स्थूल इंसान हैं जिनकी लम्बाई और चौड़ाई में कुछेक इंच का फर्क मात्र है|

उनके भारी भरकम शरीर को देखकर इस प्रचलित धारणा पे शंका होती है कि तैराकी सबसे अच्छा व्यायाम है| वहीँ दूसरी ओर उनका आयतन देख यह भी प्रतीत होता है कि तैरने में उन्हें हमसे कम मशक्कत करनी होती होगी – जैसाकि आर्कमीडिज़ ने अपने उत्प्लावन बल के सिद्धान्तों में प्रमाणित कर रखा है| उनकी विशेषता का अंदाज उनके पानी में प्रवेश करने की शैली से ही लग जाता है| जिस तरीके से वो अपने हाथ पाँव फैला कर कूदते हैं मानो पानी में छुपे भीम को ध्रितराष्ट्र वाला आलिंगन देने जा रहे हैं या फिर पूल की तलहटी में किसी डूबे हुए जहाज से अशर्फियों का बक्सा निकालने के प्रयास में लगे हुए हैं| उनका कुंतल भर का शरीर जब पानी पे आघात करता है तो पूल का तकरीबन ५ से ७ प्रतिशत पानी उछल के बाहर भाग आता है| पूल के दोनों किनारों पर लगे बाकी के साथी तैराक अपने goggles उन्हें कूदता देख के ही लगा लेते हैं|

लेकिन उनकी ज्याद्ती का ये केवल आरम्भ मात्र ही है| जिस बिजली की फुर्ती से वो तैरते हुए दिशा बदलते हैं उसे देख कर उन्हें पानी के हिरण की उपाधि दे देनी चाहिए| अमूमन हर दिन ही वो अपने तैराकी चिह्नों से पूल में नए देशों का नक्शा बनाते होंगे| उनके अत्याचार की पराकाष्ठा तब होती है जब वो ‘backfloat’ करते हुए आराम फरमा रहे होते हैं| स्थिर पानी में पड़े styrofoam का टुकड़ा जैसे हवा के थपेड़ों के साथ बेतरतीबी से इधर उधर आवारों की तरह घूम रहा हो! आये दिन कोई न कोई तैराक उनसे टकराता ही रहता है| हालाँकि अगर आप उनसे लम्बवत टकरा रहे हैं तो कोई बात नहीं| उनके गुब्बारे जैसी तोंद में टारपीडो की भी गतिज उर्जा पचा जाने की क्षमता है|


अगर कभी कोई उनसे फ़रियाद या शिकायत करे तो घोडों वाली मुस्कान के साथ वो ‘सॉरी’ बोल देते हैं और अगले मिनट फिर से शुरू! शायद उनके उम्र का लिहाज़ करते हुए हममें से कई बस दबे मुंह ‘इडियट’ बोलके निकल लेते हैं| आज हमें मालूम चला की वो खुद की गाड़ी चला के आते हैं और हम यकीन के साथ बोल सकते हैं कि ये दिल्ली के उन महान वाहन चालकों में से एक हैं जो तीसरे या चौथे लेन से दाहिने मुड़ते होंगे ये सोच कर कि उनके सामानांतर चलती गाडी के चालक ने उनका ‘राईट इंडिकेटर’ देख लिया होगा|

Sunday, February 7, 2016

कहा-सुनी

कहा-सुनी हो गई एक रोज
बड़े जोरों से,
कुछ हमने सुना दी खरी खोटी
कुछ उनके बातों की कटार चली
हम बेहिचक रहे बोलते
वो बेझिझक चिल्लाते
शोर बढ़ता रहा
बात बढ़ती रही
और गुस्सा सामानों पे निकला - चीजें टूटीं
कहा-सुनी चलती रही
सब लेकिन ठीक ठाक रहा|

फिर एक दिन
कहना बंद हो गया
हमारा भी उनका भी
दोनों ने बड़प्पन का
झूठा ढोंग सलीके से पहना
उम्मीदों में किफ़ायत मिलाई
जज्बातों पे लगाम
औ लफ्जों पे ताले लगाये
वो चुप हम चुप
फिर चुप्पी बोलने लग गई
कुछ और टुटा
कहा-सुनी ख़तम हो गई

हमेशा के लिए|