Sunday, February 7, 2016

कहा-सुनी

कहा-सुनी हो गई एक रोज
बड़े जोरों से,
कुछ हमने सुना दी खरी खोटी
कुछ उनके बातों की कटार चली
हम बेहिचक रहे बोलते
वो बेझिझक चिल्लाते
शोर बढ़ता रहा
बात बढ़ती रही
और गुस्सा सामानों पे निकला - चीजें टूटीं
कहा-सुनी चलती रही
सब लेकिन ठीक ठाक रहा|

फिर एक दिन
कहना बंद हो गया
हमारा भी उनका भी
दोनों ने बड़प्पन का
झूठा ढोंग सलीके से पहना
उम्मीदों में किफ़ायत मिलाई
जज्बातों पे लगाम
औ लफ्जों पे ताले लगाये
वो चुप हम चुप
फिर चुप्पी बोलने लग गई
कुछ और टुटा
कहा-सुनी ख़तम हो गई

हमेशा के लिए|